श्री हनुमान चालीसा Hanuman Chalisha:
श्री हनुमान चालीसा के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास जी है जिन्होंने अवधि भाषा मे श्री राम चरित मानस की रचना की था, गोस्वामी जी ने श्री राम के परम भक्त और अतुलित बल एवं बुद्धि के स्वामी श्री हनुमान जी के वर्णन में चालीसा की रचना की थी। गोस्वामी जी कहते है "हरि अनंत हरि कथा अनंता" अतः चालीसा का सम्पूर्ण वर्णन तो असंभव है इसलिए अपने ज्ञान अनुआर अर्थ है:
॥दोहा॥
श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि ।
बरनउँ रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि ॥
बुद्धिहीन तनु जानिके सुमिरौं पवन-कुमार ।
अर्थ:
श्री गुरु महाराज (जिन्होंने श्री यानी लक्ष्मी और सरस्वती का ज्ञान दिया) के चरण कमलों की धूलि को अपने मन रूपी दर्पण को पवित्र करके श्री रघुवीर के निर्मल यश का वर्णन करता हूं, जो चारों फल धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को देने वाले है।
हे पवन कुमार! मैं आपको सुमिरन करता हूं। आप तो जानते ही हैं कि मेरा शरीर और बुद्धि निर्बल है। मुझे शारीरिक बल, सद्बुद्धि एवं ज्ञान दीजिए और मेरे दुखों व दोषों का हरण(क्योंकि हनुमानजी सम्पूर्ण ग्रहो के स्वामी है अतः वो दुःखो को ऐसे दूर करते है भक्त को पता भी नही चलता) कर दीजिए।
चौपाई के अर्थ विस्तार सहित:
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