वो घटनाएं जिनका विवरण रामायण में नही है:
ब्रह्मा द्वारा महाऋषि वाल्मीकि जी को रामायण की रचना करने की प्रेरणा दी गयी थी, जिसके उपरांत महाऋषि वाल्मीकि ने संस्कृत में छंदबद्ध तरीके से श्रीराम कथा को लिखा जो रामायण या बाल्मिकी के नाम से जाना जाता है। अलग अलग समय मे अनेको महापुरुषों ने अलग अलग भाषाओं में अनुवाद किया, इसी में से अवधी भाषा मे तुलसीदास कृत रामचरित मानस है।
कुछ ऐसी कथाये है जो प्रचलित है किंतु रामायण एवं रामचरित मानस में नही है। वो इस प्रकार है:
कुछ ऐसी कथाये है जो प्रचलित है किंतु रामायण एवं रामचरित मानस में नही है। वो इस प्रकार है:
१) सुलोचना के सती होने की कथा:
सुलोचना नाग कुल में पैदा हुई वासुकी नाग की पुत्री एवं रावण के जेष्ठ पुत्र मेघनाद की पत्नी थी। सुलोचना पतिव्रता एवं तेजस्वी नारी थी। श्रीराम और रावण के युद्ध मे मेधनाद जिसे इंद्रजीत भी कहा जाता था, उसका श्रीराम के भाई लक्ष्मण जी के साथ बहुत विकराल युद्ध हुआ। अंत मे लक्ष्मण ने मेघनाद का एक हाँथ काट दिया और फिर उसका सिर काटकर मेधनाद का वध किया।
जब लक्ष्मण जी ने मेघनाद का हाँथ काटा तो वो सुलोचना के पास जाकर गिरा, सुलोचना को विस्मय हुआ अतः उसने कहा कि अगर यह मेरे पति का हाँथ है तो ये लेखनी से लिखकर अपना परिचय दे। सुलोचना के इस प्रकार कहने पर मेघनाद के हाथ ने लिखा " हां प्रिये यह मेरा ही यानी मेघनाद का हाँथ है, युद्ध मे मेरा वध हो चुका है तथा हनुमान जी द्वारा मेरा कटा हुआ सर श्रीराम के चरणों मे रखा गया है जिससे मुझे सतगति प्राप्त हुई है"।
तब शुलोचना रावण के पास गई और श्रीराम से मेघनाद का सिर मांगकर लाने को कहा। रावण बोला कि मेधनाद वीर था और उसे वीरगति प्राप्त हुई है अतः वो मस्तक लेने नही जाएगा। तब सुलोचना स्वम् श्रीराम के शिविर में गयी, तथा मेधनाद के सिर को मांगने पर श्रीराम ने आदर के साथ कहा, कि देवी मेघनाद परमवीर था तथा हम उसके शरीर को लंका वापस देने ही वाले थे ताकि उसका अंतिम संस्कार उसके परिजनों के द्वारा हो सके।
तभी कुछ वानरों ने पूछा कि उसको कैसे पता कि इंद्रजीत का मस्तक प्रभु के पास है तो सुलोचना ने बताया कि मेधनाद के हाँथ ने लिखकर बताया। तो वानर हसने लगे और बोले कि फिर तो ये सिर भी बोलने लगेगा। तब सुलोचना ने कहा कि अगर मैं पूर्ण पतिब्रता हु तो अवश्य यह सिर बोलेगा। जिसके बाद वो मेधनाद का सिर जोर जोर से हसने की गर्जना करने लगा।
श्रीराम ने सुलोचना की बहुत प्रसंसा की तथा मेघनाद का मस्तक सुलोचना को दे दिया। जिसके उपरांत सुलोचना अपने गोद मे मस्तक लेकर चिता में बैठ गयी और सती हो गई।
इस कथा का वर्णन न तो वाल्मीकि रामायण में है ना ही तुलसीदास कृत रामचरित मानस में।
२) रावण के द्वारा रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग की स्थापना:
रावण परम ज्ञानी पुरोहित तथा भगवान शिव का परम भक्त था। कई तरह को ऐसी मान्यता और कथा प्रचलित है कि जब श्रीराम सेतु का निर्माण हो रहा था तब राम जी ने भगवान शिव आराधना की थी तथा बालू के शिवलिंग की स्थापना की थी। जिसको स्थापित करने के लिए रावण को बुलवाया गया था तथा उसी ने विशेष पूजा करवाकर शिवलिंग की स्थापना करवाई थी।
परंतु रावण के पुरोहित बनकर शिवलिंग की स्थापना की कथा का वर्णन न तो रामायण में है और न ही रामचरित मानस में।
३) श्रीराम की बहन की कथा:
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार शांता राजा दशरथ एवं कौशिल्या की पुत्री थी जिनको राजा दशरथ ने अपने मित्र अंगदेश के राजा "रोमपाद" को पुत्री के तौर पर दे दिया था। यह कथा रामायण में विस्तारीत है किंतु तुलसीदास कृत रामचरित मानस में नही है। शांता श्रीराम की बड़ी बहन थी जिनका विवाह शृंग मुनि के साथ हुआ था।
४) शबरी की कथा:
मतांगमुनि के आश्रम में रहने वाली श्रीराम की परम भक्त थी सबरी। शबरी को मतांगमुनि ने कहा था कि प्रभु श्रीराम तुम्हारे पास अतिथि के रूप में आएंगे, तब से रोज शबरी श्रीराम के स्वागत में पुष्प बिछाती एवं फल इकट्ठा करती थी। शबरी भीलनि थी परंतु भगवान ने केवल उनकी भक्ति भाव देखकर जूठे वेर खाये थे।
यह कथा वाल्मीकि रामायण में नही है इसे तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में चल रही जातिगत भेदभाव को दूर करने के लिए लिखा था, ऐसी मान्यता इतिहासकारो की है।
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