अकेले अर्जुन को मिली 12 वर्षों के वनवास की कथा:
महाभारत की कथा के अनुसार लाक्षागृह की सडयंत्र के पश्चात पांडव बच गए थे और उन्हें कुछ दिनों तक अज्ञातवास में रहना पड़ा था, और इस अज्ञातवास के अंत के पहले अर्जुन ने स्वयंवर जीत कर द्रोपती से विवाह किया। परंतु कुंती के कथन को पूर्ण करने के लिए द्रोपदी का पांच पांडव से विवाह करना पड़ा था।
उसी के बाद एक दिन देवऋषी नारद पांडवो से मिलने आये, पांडवों ने उनका स्वागत बड़े ही आदर के साथ किया। तब उनसे प्रसन्न होकर नारद जी ने दो असुर भाईओं की कथा सुनाई। उंन्होने यह कथा इसलिए सुनाई थी क्योंकि भाईओं के स्त्री के कारण विवाद होता है। उस कथा के अनुसार:
उन दोनों असुर भाईओं के बीच बहुत प्रेम था, उस प्रेम के कारण उंन्होने जब वृह्मदेव को प्रसन्न किया तो पहले अमृत्व का वरदान मांगा परंतु जब वृह्मदेव अमृत्व का वरदान नही दिया, तो उन्होंने यह वरदान मांगा की उनका वध उन्ही भाईओं के हाथों हो। वृह्मदेव से आपस मे एक दूसरे के हाथों मरने का वरदान पाकर दोनों भाई समुचित पृथ्वी पर अत्याचार करना सुरु किया। देवता भी उनके अत्याचार नही बचे और उंन्होने भगवान विष्णु के सरण में गए। जब विष्णु जी ने माया से एक अति सुंदर स्त्री को वनाकर उन असुर भाईओं के पास भेजा। उस स्त्री को देखकर दोनों भाई मोहित हो गए और उसे पाने के लिए अपना आपस का प्रेम भूलकर , दोनों भाई आपस मे युद्घ करना प्रारंभ कर दिया और दोनों ने एक दूसरे को मार डाला।
नारद मुनि की यह बात को मानकर पांडवों ने नियम बनाये की द्रोपदी एक एक महीने तक प्रेत्यक पति के पास रहेगी, और जब वो किसी के पास हो तो वहां दूसरा कोई भी नही जा सके। अगर किसी ने नियम तोड़ा तो उसके लिए दंड का प्रावधान था।
उस दिन की घटना जब अर्जुन को मिली थी सजा:
जब पांडवो का इंद्रप्रस्थ पर शासन था तो एक दिन एक व्राह्मण आया और पांडवों को बोला को कुछ लुटेरे उनकी गायों को भगा कर ले जा रहे है, अतः उस व्राह्मण ने पांडवों से मदत की गुहार लगाई। अर्जुन और पांडव भाई मदत करना चाह रहे थे परंतु उनके अस्त्र सस्त्र द्रोपती के कमरे मे थे और उस समय वहां युधिष्ठिर थे। व्राह्मण की मदत करना था जिसके लिए नियम का उल्लंघन करना पड़ता अतः वो लोग कस मकस में थे। पर अर्जुन में व्राह्मण की मदत को चुना और वो द्रोपदी के कमरे में चले गए, तथा अपने अस्त्र लेकर लुटेरों से व्राह्मण की गाये छुड़वाई।
वापस आकर अर्जुन ने खुद को नियम उलंघन का दोसी मानकर 12 वर्षो का वनवास मांगा, और 12 वर्षों के वनवास पर चले गए।
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