कुंभ का आयोजन और पौराणिक कथा:
कुंभ का आयोजन जिन स्थानों पर होता है वह है प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नाशिक। यह आयोजन हर तीसरे वर्ष होता है इसलिए पुनः उसी स्थान पर कुंभ लगने में 12 वर्ष लगते है। यह ग्रहों के ऊपर निर्भर करता है, गुरु के राशि मे जिस स्थान पर होता है उसी के अनुसार कुंभ का आयोजन होता है।
कुंभ से जुड़ी हुई पौराणिक कथा:
एक कथा के अनुसार जब देवराज इंद्र भ्रमण करते हुए महर्षि दुर्वासा से मिले और उनको प्रणाम किया तो दुर्वासा ने उनको एक माला दी, जिसका अनादर करते हुए देवराज के उसे अपने हांथी को पहना दी, जिसके कारण महर्षि दुर्वासा क्रोधित हो गए और देवताओं को सक्ति विहीन होने का श्राप दे दिया।
उस श्राप के कारण देवगण शक्ति और तेज हीन हो गए, और उन्होंने इसके निवारण के लिए भगवान विष्णु के पास गए। भगवान विष्णु ने बताया कि आपलोग असुरो के साथ मैत्री करके समुंद्र मंथन करो जिससे आपलोग पुनः शक्तिशाली हो जाओगे और समुद्र मंथन से निकले अमृत के कारण अमर हो जाओगे।
तब देवताओं और असुरो ने मिलकर समुन्द्र मंथन किया जिसके उपरांत अमृत निकाला, उस अमृतपान के लिए देवताओं और असुरो के विवाद हो गया। और उसको छिनने में अमृत की बूंदे कई लोको में गिरी।
उसमे से चार स्थान पृथ्वी पर है जंहा पर कुम्भ का आयोजन होता है।
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