कौन थे भीमसेन:
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महाभारत काल ने पांडु पुत्र थे भीमसेन। परंतु पांडु के श्राप के कारण उनकी पत्नी ने अपने मिले हुए एक वरदान से पवन देव से इस पुत्र को पाया था इसलिए भीम पवन देव के भी औरस पुत्र है। वो बहुत शक्तिशाली थे इसीलिए उनको अपने अपने बल का अहंकार हो गया था, जिसे हनुमानजी के चूर किया था।
भीमसेन के अहंकार को हनुमानजी द्वारा चूर करने की कथा:
महाभारत युद्ध के पहले जब श्रीकृष्ण जी को यह लगा कि महाबली भीम को अपने बल का अहंकार हो गया है तो उन्होंने हनुमान जी को भीम के अहंकार को चूर करने को कहा।
तब हनुमान जी भीम के मार्ग में अपनी पूंछ को बिछा कर लेट गए। जब भीम वंहा आये और अपने मार्ग में वानर की पूछ देखी तो उन्हें क्रोध आ गया। और हनुमानजी को एक बूढ़ा वानर समझ कर कहने लगे कि ये बूढ़े वानर अपनी पूंछ नही सम्हाल पा रहे हो इसे हटा लो नही तो मैं इसे उठा कर फेंक दूँगा।
तब हनुमानजी ने कहा कि मैं बूढ़ा हो गया हूं और अभी आराम करने बैठा हूँ तुम दूसरे मार्ग से चले जाओ नही तो इसे लांघ कर निकल जाओ।
भीम ने कहा कि मैं ना ही दूसरे मार्ग से जाऊंगा और न ही लांघ कर , तुम अपनी पूंछ हटा लो नही तो मैं इसे फेक दूँगा।
हनुमान जी बोले फेक दो क्योंकि मै तो आराम करने लेटा हूं।
फिर तो भीम को बहुत क्रोध आ गया और वो पूछ को हटाने लगे, वो समझ रहे थे कि ये कोई सामान्य बूढ़ा वानर है। लेकिन उनके बहुत बल और कोशिस करने के वावजूद भी वो हनुमान जी की पूछ को हटा नही पाए। फिर उन्हें बल का अभिमान कम हुआ और वो समझ गए ये कोई साधारण वानर नही है, तब उन्होंने हनुमानजी से परिचय मांगा और छमा भी मांगे।
तब हनुमानजी ने अपना परिचय दिया और बताया कि बलवान होगा का अभिमान नही होना चाहिए बल्कि इसका इस्तेमाल सही जगह होना चाहिए।
सारांश Conclusion :
कभी भी बल का घमंड नही होना चाहिए बल्कि उसका स्तेमाल लोक हित में करना चाहिए।
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