रावण के पराजय की कथाएँ:
रावण परम वीर और दिग्विजयी था, उसने ब्रह्मा जी को प्रसन्न करके कई वरदान प्राप्त कर रखा था। जिसके कारण उसको युद्ध मे पराजित करना कठिन था, उसने देवताओं, अशुरो, किन्नरों, यक्ष, गंधर्व किसी के भी हांथो मृत्यु न होने का वरदान प्राप्त किया था। परंतु नर और वानर को तुक्ष्य मानकर इनका नाम नही लिया था। जिस कारण भगवान राम का अवतार हुआ और रावण का वध हुआ।
परंतु वह केवल भगवान राम से ही पराजित नही हुआ था अपितु चार और युद्ध वो हारा था, उनकी कथा इस प्रकार है:
रावण का राजा बलि से युद्ध:
रावण को अपने बल पर बहुत अभिमान था अतः उसने युद्ध की लालसा से पाताल लोक के राजा बलि से युद्ध करने पहुँच गया था। जब उसने बलि को युद्ध के लिए ललकारा तो बलि ने उसे युद्ध मे पराजित करके बंदी बना लिया और घोड़ो के अस्तबल ने बांध दिया। बाद में उसे छोड़ दिया।
रावण का सहस्त्रबाहु से युद्ध:
रावण का सहस्त्रबाहु से युद्ध हुआ, सहस्त्रबाहु की एक हजार भुजाएं थी जिस कारण उसका नाम सहस्त्रबाहु था। रावण युद्ध के विचार से सेना सहित आक्रमण किया, परंतु सहस्त्रबाहु ने अपनी भुजाओं से नदी का पानी रोक लिया और इकट्ठा करके छोड़ दिया जिस कारण रावण की पूरी सेना पानी मे बह गई। उसके बाद रावण की सहस्त्रबाहु से पराजय हुई।
रावण का वानर राज बाली से युद्ध:
वानर राज बाली परम वीर था और उसको ब्रह्मा से मंत्र प्राप्त यह जिसकारण यह कभी पराजय नही होता था और प्रतिद्वंदी का आधा बल उसको मिल जाता था। वानर राज बाली ने रावण को पराजित किया था और कई महीनों तक अपनी कांख में दबाकर सूर्य की पूजा करता था।
रावण का भगवान शिव से सामना:
रावण अपने बल के मद में भगवान शिव से युद्ध करने पहुच गया, परंतु जब उसके बहुत ललकारने पर शिवजी का ध्यान भंग नही हुआ और वो ध्यान में लीन रहे तो वो कैलाश पर्वत को उठाने लगा।
तब शिवजी ने अपने पैर के अंगूठे से कैलाश पर्वत को दबा दिया जिसके कारण उसका हाथ पर्वत के नीचे दब गया और बहुत प्रयत्न करने पर भी नही निकल सका।
उसे शिवजी के शक्ति का ज्ञान हो गया और उसने शिव स्त्रोत की रचना की जिससे प्रसन्न होकर शिवजी ने उसे छोड़ दिया।
श्रीराम से युद्ध:
रावण ने माता सीता का अपहरण किया जिसके कारण श्रीराम ने वानर सेना के साथ युद्ध कर माता सीता को मुक्त करवाया और रावण का कुल समेत सर्वनाश हुआ। श्रीराम ने अपने भक्त और रावण के भाई विभीषण को लंका का राजा नियुक्त कर अयोध्या वापस आये।
सारांश Conclusion
कोई कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो पराजय का सामना सभी को करना पड़ता है, अतः शक्ति का अभिमान नही होना चाहिए अपितु जान कल्याण में उसका स्तेमाल करना चाहिए।
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