श्रीकृष्ण जी की दुर्लभ कथा:
यह कथा पुराण से है, जब भगवान श्रीकृष्ण की ने अपनी पत्नी सत्यभामा, अपने वाहन गरुण और सुदर्शन चक्र का घमंड भंग किया था।
एक बार रानी सत्यभामा ने भगवान श्रीकृष्ण से कहा कि प्रभु आप त्रेतायुग में भगवान श्रीराम के रूप में अवतरित हुए थे तब सीता आपकी पत्नी थी तो क्या मैं उनसे ज्यादा खूबसूरत है। तब प्रभु श्रीकृष्ण समझ गए कि इनको अपने रूप का अहंकार हो गया है।
फिर गरुण ने पूछा प्रभु मैं आपका वाहन हु अर्थात मैं दुनिया मे सबसे ज्यादा तेज से उड़ सकता हूं, और सुदर्शन चक्र ने कहा कि प्रभु मैं आपका सबसे प्रिय अस्त्र हु अर्थात मैं सबसे ज्यादा शाक्तिशाली हूँ।
भगवान श्रीकृष्ण ने इन तीनो का घमंड को भंग करने के लिए सोचा और गरुण को आदेश दिया कि तुम हनुमान के पास जाओ और बोलना की श्रीराम माता सीता के साथ आपकी प्रतीक्षा में है और आपको जल्दी बुलाया है। गरुण वंहा से निकल गए।
तब उन्होंने सुदर्शन चक्र को कहा कि तुम द्वार पर रहो और किसी को अंदर नही आने देना। और खुद राम के रूप में सिंघासन पर बैठ गए और रानी सत्यभामा को बगल के आसन पर बिठा लिया।
उधर जब गरुण हनुमान जी के पास जाकर सारी बात बताई और बोले आप अपने मेरे पीठ पर बैठ जाइए मैं आपको जल्द पहुचा देता हूं। हनुमान जी ने कहा आप जाईये मैं आता हूं, तो गरुण जी ने सोचा ये सबसे बड़े भक्त बनते है और इनको प्रभु की बात का कोई जल्दबाजी ही नही है (क्योंकि हनुमान जी बूढ़े दिख रहे थे तो गरुण को लगा ये पता नही कब पहुचेगे)।
जब गरुण पहुचे तो देखा हनुमान जी पहले ही वंहा पहुच गए है और प्रभु के समीप बैठे है और अब भी उनके तेज है इससे उनका घमंड भंग हो गया।
फिर भगवान ने हनुमानजी से पूंछा आप अंदर आये आपको किसी ने रोक नही तब हनुमानजी ने दांत में दबे सुदर्शन चक्र को निकलते हुए बोले इन्होने रोक था तो मैंने मुह में दबा लिया। (इससे सुदर्शन चक्र का घमंड भंग हुआ)।
हनुमान जी ने सत्यभामा की तरफ इशारा करते हुए बोले प्रभु माता सीता कहा है और ये दासी यंहा क्यों बैठी है।(इससे सत्यभामा का घमंड भंग हुआ)। तब प्रभु श्रीकृष्ण ने सारी बात बताई और सब मुस्कुराने लगे।
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