द्रोणाचार्य के जन्म की विचित्र एवं रोचक कथा: बिना मां के जन्मे थे द्रोणाचार्य
ऋषि द्रोणाचार्य मह्रिषी भारद्वाज के पुत्र थे, ऋषि भारद्वाज महान तपस्वी, यसस्वी, एवम वेदों के ज्ञाता थे। एक बार उन्होंने महान जप का अनुष्ठान किया था जिसके लिए वो सुबह गंगा स्नान करके जप एवम यज्ञ के कार्य मे लग जाते थे।
एक दिन जब वो स्नान करने जा रहे थे तो वंहा एक घृताची नामक अप्सरा स्नान करके जा रही थी , उसको देखकर ऋषि के मन मे काम उत्पन हो गया जिससे वीर्य स्खलित हो गया जिसे ऋषि ने पत्ते के एक दोने(द्रोण पत्र) इकट्ठा करके झाड़ियो के बीच रख दिया।ऋषि भारद्वाज फिर स्नान और यज्ञ के कार्य मे लग गए।
एक दिन वो ध्यान में लीन थे तब उनको उन झाडिओ में एक बच्चे का यहसास हुआ।
उनके वंहा जाने पर उनको एक बच्चा मिला, पत्ते के दोने से पैदा होने के कारण उनका नाम द्रोणाचार्य हुआ। जो प्रतापी ऋषि एवम पांडवो और कौरवो के गुरु हुए।
द्रोणाचार्य का विवाह सरद्वान कि पुत्री कृपि से हुआ था।
अस्वस्थामा नाम का पुत्र हुआ जो जन्म से अश्व के समान आवाज़ निकालता था इसलिए उनका नाम अश्वस्थामा रखा गया।
वह बहुत ही प्रतापी एवम अमृत्व को प्राप्त हुआ , कहा जाता है अश्वस्थामा आज भी जीवित है।
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