भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय:
भगवान शिव के जेष्ठ पुत्र के रूप में कार्तिकेय का जन्म हुआ, जिनको भगवान स्कन्द के नाम से भी जाना जाता है। भगवान कार्तिकेय जन्म से परम शक्तिशाली और वीर योद्धा थे क्योंकि तारकासुर नामक दैत्य का वध उन्ही के हांथो निश्चित हुआ था व्रह्मा जी के कथन के कारण। भगवान कार्तिकेय को तमिल का जनक माना जाता है अतः उनकी पूजा भी दक्षिण प्रदेशों में ज्यादा होती है। भगवान स्कन्द या कार्तिकेय को देवताओं का सेनापति भी कहा गया है। इनके कई नामो में से एक नाम मुरुगन भी है तथा इनका वाहन मयूर है।
भगवान कार्तिकेय के जन्म की कथा:
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मलेशिया स्थित कार्तिकेय जी की प्रतिमा |
जब पृथ्वी पर तारकासुर नामक दैत्य का आतंक बहुत बढ़ गया और उसने देवताओं को भी परास्त कर दिया तो व्रह्मा जी ने उसका मृत्यु भगवान शिव के पुत्र के हांथो निश्चित किया।
परंतु माता सती के अपने पिता दक्ष प्रजापति के अग्निकुंड में दाह के उपरांत भगवान शिव वैराग्य होकर तप में लीन रहते थे। तब सभी देवताओं और ऋषियों के अथक प्रयास से भगवान शिव का विवाह हिमालय राज की पुत्री, माता पार्वती से हुआ।
भगवान शंकर और पार्वती के मांगलिक मिलन के बाद भी जब कोई संतान नहीं हुई तो सब विचलित हो गए। सर्वाधिक परेशान तो इंद्र थे। जो तारकासुर से पीड़ित थे। कथा आती है कि शंकर जी के शुक्र से कार्तिकेय का जन्म हुआ। लेकिन पार्वती जी उनकी धर्ममाता थीं। सबने मिलकर बालक का नाम कार्तिकेय रखा। कार्तिकेय अतुलित बलशाली थे। उन्होंने छह मुखों से स्तनपान किया। देवता बार-बार शंकरजी से आराधना कर रहे थे कि तारकासुर के वध के लिए कार्तिकेय जी को कहिए। आखिरकार समय आया और कार्तिकेय ने तारकासुर का वध कर दिया। तारकासुर के वध के साथ ही दो बातें पूरी हुईं। यह सही है कि कार्तिकेय भगवान शंकर जी के शुक्र से उत्पन्न हुए लेकिन शंकर जी ने अपना तपस्वी रूप नहीं त्यागा। वह निर्विकार, निर्लिप्त और काम से दूर रहे। दूसरे, तारकासुर के वध से यह बात सिद्ध हुई कि कोई कितना ही प्रयास क्यों न करे, मौत अपना रास्ता बना ही लेती है। तारकासुर को क्या पता था कि शंकर जी के पुत्र होगा? यह पुत्र ही उनका वध करेगा। उसने तो बहुत सोच विचारकर ब्रह्मा जी से वरदान मांगा था। चतुर था। शैतान था। शैतान का दिमाग ज्यादा तेज चलता है। अंततोगत्वा, भगवान शंकर के पुत्र हुआ। कार्तिकेय जी ने तारकासुर का वध करके देवताओं को भयमुक्त कर दिया।
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