परशुराम: भगवान विष्णु के छठा अवतार
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Picture From: Jai Parsuram facebook page |
भगवान परशुराम बाल्यकाल काल मे ही बहुत सी विद्याएं अर्जित कर ली थी, उन्हें पशु-पक्षियों की भाषा का ज्ञान था, वे खतरनाक और विषेले जानवरों को भी वश में कर लेते थे। मन की गति से कही भी आने-जाने की कला जानते थे परशुराम।
भगवान परशुराम का परिचय:
पुराणों के अनुसार भगवान परशुराम ने 21 बार पृथ्वी को अहंकारी हैहय वंश के क्षत्रियों से विहीन कर दिया था। उन्होंने अपने एक बाढ़ चलाकर समुंद्र को पीछे ढकेल दिया था जिसके बाद कोंकण, गोवा से लेकर केरल तक कि जमीन में कई गांव वसाए थे। भगवान पशुराम के कई गुरु थे जैसे विस्वामित्र, कस्यप और भगवान शिव। उनके कुछ शिष्य भी थे जिन्हें उन्होंने शस्त्र विद्या दी थी जैसे भीष्म, कर्ण, और द्रोण।
रामायण और महाभारत में परशुराम का प्रसंग:
रामायण में श्रीराम के द्वारा सीता स्वयम्वर में शिवजी के धनुष को भंजन के उपरांत परशुराम अत्यंत क्रोध में पहुचे और लक्ष्मण जी के साथ बात विवाद हुआ, बाद में उन्होंने श्रीराम के रूप में भगवान विष्णु के अवतार का आभास हुआ और वे वंहा से चले गए।
महाभारत में भीष्म और द्रोण के गुरु थे , साथ ही वे कर्ण के भी गुरु थे। बाद में कर्ण के साहस से उनको आभास हुआ कि ये क्षत्रिय है तो उन्होंने उसे श्राप दिया कि जब उसे उनसे प्राप्त विद्या की सबसे ज्यादा जरूरत होगी तो वो भूल जाएगा।
पिता भक्त परशुराम:
एक कथा के अनुसार एक बार परशुराम की माता रेणुका गंगा तट पर पानी लेने गयी थी जंहा पर एक गन्धर्व अप्सराओं के साथ विहार कर रहे थे। उनको देखकर रेणुका कुछ देर रुक गयी और जल लेकर आने में समय लग गया। उधर परशुराम के पिता जमदग्नि को हवन कार्य का मुहूर्त निकल गया जिसकी वजह से वो क्रोधित हो गए।
और उन्होंने अपने सभी पुत्रो को आदेश दिया कि माता की हत्या कर दे। पिता की इस आज्ञा का पालन किसी ने नही किया परंतु परशुराम ने पिता की आज्ञानुसार माता का सिर काट दिया और विरोध करने आये भाईयो का भी वध कर दिया। पिता प्रसन्न होकर वरदान मांगने को कहा तो उन्होंने सब के जीवित होने का वरदान मांगा, और सब जीवित हो गए।
सहस्त्रबाहु के वध और क्षत्रीय विहीन की कथा:
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Picture From: Jai Parsuram facebook page |
एक बार सहस्त्रबाहु परशुराम के पिता जमदग्नि के आश्रम में आया जिसका स्वागत किया गया , लेकिन उसको आश्रम की एक कपिला गाय पसन्द आयी और वो उसको चुरा ले गया। उस गाय को लेने गए भगवान परशुराम ने युद्ध किया और सहस्त्रबाहु की सभी भुजाओं को काट दिया और सर काट कर वध कर दिया।
अपने पिता का बदला लेने के लिए सहस्त्रबाहु के पुत्रों ने जमदग्नि की हत्या कर दी जिनके शोक में माता रेणुका सती हो गयी। इस आवेश में आकर भगवान परशुराम बे 21 बार हैहय वंश के क्षत्रियो को पृथ्वी से विहीन कर दिया।
उन्होंने क्षत्रीयो का इतना रक्त बहाया की रक्त से पांच शारोवर भर दिए। बाद में उन्होंने पश्चात्ताप में यज्ञ किया जिसमें पूरी पृथ्वी अपने गुरु कस्यप ऋषि को दान में दे दी।
कस्यप ऋषि ने उनको डरती में न रहने की आज्ञा दी, जिसके कारण वो समुन्दर में बने महेंद्र पर्वत में रहने लगे।
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